बहुव्रीहि समास
बहुव्रीहि समास:- समास में आये पदों को छोड़कर जब किसी अन्य पदार्थ की प्रधानता हो, तब उसे बहुव्रीहि समास कहते है।
दूसरे शब्दों में- जिस समास में पूर्वपद तथा उत्तरपद- दोनों में से कोई भी पद प्रधान न होकर कोई अन्य पद ही प्रधान हो, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।
जैसे- दशानन- दस मुहवाला- रावण।
जैसे- दशानन- दस मुहवाला- रावण।
जिस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिल कर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते है, उसमें बहुव्रीहि समास होता है। 'नीलकंठ', नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव। यहाँ पर दोनों पदों ने मिल कर एक तीसरे पद 'शिव' का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है।
इस समास के समासगत पदों में कोई भी प्रधान नहीं होता, बल्कि पूरा समस्तपद ही किसी अन्य पद का विशेषण होता है।
समस्त-पद | विग्रह |
---|---|
प्रधानमंत्री | मंत्रियो में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री) |
पंकज | (पंक में पैदा हो जो (कमल) |
अनहोनी | न होने वाली घटना (कोई विशेष घटना) |
निशाचर | निशा में विचरण करने वाला (राक्षस) |
चौलड़ी | चार है लड़ियाँ जिसमे (माला) |
विषधर | (विष को धारण करने वाला (सर्प) |
मृगनयनी | मृग के समान नयन हैं जिसके अर्थात सुंदर स्त्री |
त्रिलोचन | तीन लोचन हैं जिसके अर्थात शिव |
महावीर | महान वीर है जो अर्थात हनुमान |
सत्यप्रिय | सत्य प्रिय है जिसे अर्थात विशेष व्यक्ति |
तत्पुरुष और बहुव्रीहि में अन्तर- तत्पुरुष और बहुव्रीहि में यह भेद है कि तत्पुरुष में प्रथम पद द्वितीय पद का विशेषण होता है, जबकि बहुव्रीहि में प्रथम और द्वितीय दोनों पद मिलकर अपने से अलग किसी तीसरे के विशेषण होते है।
जैसे- 'पीत अम्बर =पीताम्बर (पीला कपड़ा )' कर्मधारय तत्पुरुष है तो 'पीत है अम्बर जिसका वह- पीताम्बर (विष्णु)' बहुव्रीहि। इस प्रकार, यह विग्रह के अन्तर से ही समझा जा सकता है कि कौन तत्पुरुष है और कौन बहुव्रीहि। विग्रह के अन्तर होने से समास का और उसके साथ ही अर्थ का भी अन्तर हो जाता है। 'पीताम्बर' का तत्पुरुष में विग्रह करने पर 'पीला कपड़ा' और बहुव्रीहि में विग्रह करने पर 'विष्णु' अर्थ होता है।
जैसे- 'पीत अम्बर =पीताम्बर (पीला कपड़ा )' कर्मधारय तत्पुरुष है तो 'पीत है अम्बर जिसका वह- पीताम्बर (विष्णु)' बहुव्रीहि। इस प्रकार, यह विग्रह के अन्तर से ही समझा जा सकता है कि कौन तत्पुरुष है और कौन बहुव्रीहि। विग्रह के अन्तर होने से समास का और उसके साथ ही अर्थ का भी अन्तर हो जाता है। 'पीताम्बर' का तत्पुरुष में विग्रह करने पर 'पीला कपड़ा' और बहुव्रीहि में विग्रह करने पर 'विष्णु' अर्थ होता है।
बहुव्रीहि समास के भेद
बहुव्रीहि समास के चार भेद है-
(i) समानाधिकरणबहुव्रीहि
(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहि
(iii) तुल्ययोगबहुव्रीहि
(iv) व्यतिहारबहुव्रीहि
(i) समानाधिकरणबहुव्रीहि
(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहि
(iii) तुल्ययोगबहुव्रीहि
(iv) व्यतिहारबहुव्रीहि
(i) समानाधिकरणबहुव्रीहि :- इसमें सभी पद प्रथमा, अर्थात कर्ताकारक की विभक्ति के होते है; किन्तु समस्तपद द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वह कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्ति-रूपों में भी उक्त हो सकता है।
जैसे- प्राप्त है उदक जिसको =प्राप्तोदक (कर्म में उक्त);
जीती गयी इन्द्रियाँ है जिसके द्वारा =जितेन्द्रिय (करण में उक्त);
दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन (सम्प्रदान में उक्त);
निर्गत है धन जिससे =निर्धन (अपादान में उक्त);
पीत है अम्बर जिसका =पीताम्बर;
मीठी है बोली जिसकी =मिठबोला;
नेक है नाम जिसका =नेकनाम (सम्बन्ध में उक्त);
चार है लड़ियाँ जिसमें =चौलड़ी;
सात है खण्ड जिसमें =सतखण्डा (अधिकरण में उक्त)।
जीती गयी इन्द्रियाँ है जिसके द्वारा =जितेन्द्रिय (करण में उक्त);
दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन (सम्प्रदान में उक्त);
निर्गत है धन जिससे =निर्धन (अपादान में उक्त);
पीत है अम्बर जिसका =पीताम्बर;
मीठी है बोली जिसकी =मिठबोला;
नेक है नाम जिसका =नेकनाम (सम्बन्ध में उक्त);
चार है लड़ियाँ जिसमें =चौलड़ी;
सात है खण्ड जिसमें =सतखण्डा (अधिकरण में उक्त)।
(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहि :-समानाधिकरण में जहाँ दोनों पद प्रथमा या कर्ताकारक की विभक्ति के होते है, वहाँ पहला पद तो प्रथमा विभक्ति या कर्ताकारक की विभक्ति के रूप का ही होता है, जबकि बादवाला पद सम्बन्ध या अधिकरण कारक का हुआ करता है।
जैसे- शूल है पाणि (हाथ) में जिसके =शूलपाणि;वीणा है पाणि में जिसके =वीणापाणि।
(iii) तुल्ययोगबहुव्रीहिु:- जिसमें पहला पद 'सह' हो, वह तुल्ययोगबहुव्रीहि या सहबहुव्रीहि कहलाता है।
'सह' का अर्थ है 'साथ' और समास होने पर 'सह' की जगह केवल 'स' रह जाता है। इस समास में यह ध्यान देने की बात है कि विग्रह करते समय जो 'सह' (साथ) बादवाला या दूसरा शब्द प्रतीत होता है, वह समास में पहला हो जाता है।
'सह' का अर्थ है 'साथ' और समास होने पर 'सह' की जगह केवल 'स' रह जाता है। इस समास में यह ध्यान देने की बात है कि विग्रह करते समय जो 'सह' (साथ) बादवाला या दूसरा शब्द प्रतीत होता है, वह समास में पहला हो जाता है।
जैसे- जो बल के साथ है, वह=सबल;
जो देह के साथ है, वह सदेह;
जो परिवार के साथ है, वह सपरिवार;
जो चेत (होश) के साथ है, वह =सचेत।
जो देह के साथ है, वह सदेह;
जो परिवार के साथ है, वह सपरिवार;
जो चेत (होश) के साथ है, वह =सचेत।
(iv)व्यतिहारबहुव्रीहि:-जिससे घात-प्रतिघात सूचित हो, उसे व्यतिहारबहुव्रीहि कहा जाता है।
इ समास के विग्रह से यह प्रतीत होता है कि 'इस चीज से और इस या उस चीज से जो लड़ाई हुई'।
इ समास के विग्रह से यह प्रतीत होता है कि 'इस चीज से और इस या उस चीज से जो लड़ाई हुई'।
जैसे- मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई =मुक्का-मुक्की;
घूँसे-घूँसे से जो लड़ाई हुई =घूँसाघूँसी;
बातों-बातों से जो लड़ाई हुई =बाताबाती।
इसी प्रकार, खींचातानी, कहासुनी, मारामारी, डण्डाडण्डी, लाठालाठी आदि।
घूँसे-घूँसे से जो लड़ाई हुई =घूँसाघूँसी;
बातों-बातों से जो लड़ाई हुई =बाताबाती।
इसी प्रकार, खींचातानी, कहासुनी, मारामारी, डण्डाडण्डी, लाठालाठी आदि।
इन चार प्रमुख जातियों के बहुव्रीहि समास के अतिरिक्त इस समास का एक प्रकार और है। जैसे-
प्रादिबहुव्रीहि- जिस बहुव्रीहि का पूर्वपद उपसर्ग हो, वह प्रादिबहुव्रीहि कहलाता है।
जैसे- कुत्सित है रूप जिसका = कुरूप;
नहीं है रहम जिसमें = बेरहम;
नहीं है जन जहाँ = निर्जन।
प्रादिबहुव्रीहि- जिस बहुव्रीहि का पूर्वपद उपसर्ग हो, वह प्रादिबहुव्रीहि कहलाता है।
जैसे- कुत्सित है रूप जिसका = कुरूप;
नहीं है रहम जिसमें = बेरहम;
नहीं है जन जहाँ = निर्जन।
तत्पुरुष के भेदों में भी 'प्रादि' एक भेद है, किन्तु उसके दोनों पदों का विग्रह विशेषण-विशेष्य-पदों की तरह होगा, न कि बहुव्रीहि के ढंग पर, अन्य पद की प्रधानता की तरह। जैसे- अति वृष्टि= अतिवृष्टि (प्रादितत्पुरुष) ।
द्रष्टव्य- (i) बहुव्रीहि के समस्त पद में दूसरा पद 'धर्म' या 'धनु' हो, तो वह आकारान्त हो जाता है।
जैसे- प्रिय है धर्म जिसका = प्रियधर्मा;
सुन्दर है धर्म जिसका = सुधर्मा;
आलोक ही है धनु जिसका = आलोकधन्वा।
जैसे- प्रिय है धर्म जिसका = प्रियधर्मा;
सुन्दर है धर्म जिसका = सुधर्मा;
आलोक ही है धनु जिसका = आलोकधन्वा।
(ii) सकारान्त में विकल्प से 'आ' और 'क' किन्तु ईकारान्त, उकारान्त और ऋकारान्त समासान्त पदों के अन्त में निश्र्चितरूप से 'क' लग जाता है।
जैसे- उदार है मन जिसका = उदारमनस, उदारमना या उदारमनस्क;
अन्य में है मन जिसका = अन्यमना या अन्यमनस्क;
ईश्र्वर है कर्ता जिसका = ईश्र्वरकर्तृक;
साथ है पति जिसके; सप्तीक;
बिना है पति के जो = विप्तीक।
जैसे- उदार है मन जिसका = उदारमनस, उदारमना या उदारमनस्क;
अन्य में है मन जिसका = अन्यमना या अन्यमनस्क;
ईश्र्वर है कर्ता जिसका = ईश्र्वरकर्तृक;
साथ है पति जिसके; सप्तीक;
बिना है पति के जो = विप्तीक।
बहुव्रीहि समास की विशेषताएँ
बहुव्रीहि समास की निम्नलिखित विशेषताएँ है-
(i) यह दो या दो से अधिक पदों का समास होता है।
(ii)इसका विग्रह शब्दात्मक या पदात्मक न होकर वाक्यात्मक होता है।
(iii)इसमें अधिकतर पूर्वपद कर्ता कारक का होता है या विशेषण।
(iv)इस समास से बने पद विशेषण होते है। अतः उनका लिंग विशेष्य के अनुसार होता है।
(v) इसमें अन्य पदार्थ प्रधान होता है।
(ii)इसका विग्रह शब्दात्मक या पदात्मक न होकर वाक्यात्मक होता है।
(iii)इसमें अधिकतर पूर्वपद कर्ता कारक का होता है या विशेषण।
(iv)इस समास से बने पद विशेषण होते है। अतः उनका लिंग विशेष्य के अनुसार होता है।
(v) इसमें अन्य पदार्थ प्रधान होता है।
बहुव्रीहि समास-संबंधी विशेष बातें
(i) यदि बहुव्रीहि समास के समस्तपद में दूसरा पद 'धर्म' या 'धनु' हो तो वह आकारान्त हो जाता है। जैसे-
आलोक ही है धनु जिसका वह= आलोकधन्वा
आलोक ही है धनु जिसका वह= आलोकधन्वा
(ii) सकारान्त में विकल्प से 'आ' और 'क' किन्तु ईकारान्त, ऊकारान्त और ॠकारान्त समासान्त पदों के अन्त में निश्चित रूप से 'क' लग जाता है। जैसे-
उदार है मन जिसका वह= उदारमनस्
अन्य में है मन जिसका वह= अन्यमनस्क
साथ है पत्नी जिसके वह= सपत्नीक
उदार है मन जिसका वह= उदारमनस्
अन्य में है मन जिसका वह= अन्यमनस्क
साथ है पत्नी जिसके वह= सपत्नीक
(iii) बहुव्रीहि समास में दो से ज्यादा पद भी होते हैं।
(iv) इसका विग्रह पदात्मक न होकर वाक्यात्मक होता है। यानी पदों के क्रम को व्यवस्थित किया जाय तो एक सार्थक वाक्य बन जाता है। जैसे-
लंबा है उदर जिसका वह= लंबोदर
वह, जिसका उदर लम्बा है।
लंबा है उदर जिसका वह= लंबोदर
वह, जिसका उदर लम्बा है।
(v) इस समास में अधिकतर पूर्वपद कर्त्ता कारक का होता है या विशेषण।
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